अब यह कुरुक्षेत्र मेरा है / उमा अर्पिता
तुमने वक्त आने पर
मुझे मेरा अधिकार देने का
वादा किया था -
और मैं, तुम्हारे वादे पर
विश्वास कर चुपचाप
अपनी बारी की प्रतीक्षा
करती रही!
वक्त आया
और बीत गया -
तुमने सब नियम-कायदे
ताक पर रख
मेरा अधिकार किसी और की
झोली में डाल दिया
और मुझे
थमा दिया कोरा आश्वासन
कि आगे जो भी होगा
सब ठीक होगा
और याद रखा जाएगा
वादा भी और अधिकार भी -
मैंने फिर तुम पर
विश्वास किया और
चुपचाप सब सहन करते हुए
प्रतीक्षा करने लगी
एक बार फिर अपनी बारी की!
एक लंबी प्रतीक्षा के बाद
जब आई मेरी बारी
तब तुमने फिर मेरा अधिकार भूल
अपने अधिकार का किया दुरुपयोग
और एक बार फिर
मुझे पंक्ति में से पीछे
खींच लिया गया!
दुखद थे वो क्षण मेरे लिए
मेरी खामोशी और सहनशीलता पर
एक और आघात -
लेकिन मोटी हो गई
तुम्हारी चमड़ी कुछ और -
तुम्हारी आँखों में न शरम थी
और न लडखड़ाई थी
तुम्हारी जबान, एक बार फिर
मुझे आश्वासन देते हुए/
एक बार फिर पंक्ति में खड़े हो
चुपचाप अपनी बारी की प्रतीक्षा
करने को कहते हुए!
लेकिन इस बार
तुम्हारी इस बेशर्मी को
नहीं स्वीकारा मैंने -
अब, जबकि एक बार फिर
मुझे अपने गन्तव्य तक
पहुँचने की राह दिखी
तो तुमने फिर मुझे
पंक्ति से बाहर निकाल
फेंकने की योजना बना ली!
लेकिन हर बार नहीं
हर बार ऐसा नहीं होगा
अबकी बार तुमने
मेरे स्वाभिमान पर
वार किया था -
और मैंने सोच लिया था
उसी क्षण -
परिणाम चाहे जो हो, पर
अब मैं तुम्हें, तुम्हारे
मंसूबों में कामयाब नहीं
होने दूँगी -
परिणाम की चिंता नहीं, पर
तुम्हारी बेशर्मी के आगे
घुटने नहीं टेकूँगी!
तुम वार करो -
लाख चक्रव्यूह खड़े करो -
हर संभव प्रयास करो
मुझे उन चक्रव्यूहों में फँसाने का -
पर तुम्हारी कौरव सेना
कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी मेरा
क्योंकि -
अब यह कुरुक्षेत्र मेरा है -
यहाँ लड़ाई की नीति मेरी होगी!
शुरुआत तुमने की है
और इसका अंत
अब मेरे हाथों होगा --
अब वार मेरा होगा
और तिलमिलाहट तुम्हारी!
खेल मेरा होगा
और बौखलाहट तुम्हारी!
यह धर्मयुद्ध है
और इसमें
जीत सत्य की होगी -
अब यह लड़ाई इसी विश्वास के साथ!
प्रतीक्षा है समय के कोहरे के छँटने की
परिणाम उसके पार है
जो होगा, सुखद ही होगा!