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अब ये खुशी मैं तुम्हें सौंपना चाहती हूँ / रजनी अनुरागी

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तुमने मुझे हमेशा धरती बनाया
तुम आसमान बन गए
मेरे अस्तित्व को समेट लिया अपने में
और मैं खुश
कि तुम मेरे ही तो हो

तुम ही तो हो
जो मुझे हरदम घेरे रहते हो
जब चाहते हो बरस जाते हो बादल की तरह
जब चाहते हो बदली में छिप जाते हो बन चांद
जब चाहते हो जगा देते हो भाव
जब चाहते हो नि:संग हो जाते हो
जब चाहते हो ढल जाते हो बनकर सांझ
जब चाहते हो प्रखर हो जाते हो सूरज की तरह
जब चाहते हो झुलसा देते हो जेठ की गरमी की तरह
मैं दरक जाती हूँ तो सराबोर कर देते हो
रिमजिम फुहारों से
और मैं खुश कि तुम मेरे ही तो हो

सरसराता है जब मुझमें जीवन
मैं संभालती हूँ उसे अपनी कोख में
हल्के स्पर्शों की थपकी देकर
जब लहलहाने लगती हूँ
तो छीन कर ले जाते हो सर्वस्व
और मैं खुश कि तुम मेरे ही तो हो

मगर मैं अब चाहती हूँ मुक्त होना
इस भाव इस मन से
इस देह से इस नेह से
ये सब तुम्हारा है
इनमें मेरा कुछ भी नहीं