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अब रंज से ख़ुशी से बहार-ओ-ख़िज़ा से क्या / रविन्द्र जैन
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अब रंज से ख़ुशी से बहार-ओ-ख़िज़ा से क्या
मह्व-ए-ख़याल यार हैं हम को जहाँ से क्या
उनका ख़याल उनकी तलब उनकी आरज़ू
जिस दिल में वो हो, माँगे किसी महरबाँ से क्या
हम ने चिराग़ रख दिया तूफ़ाँ के सामने
पीछे हटेगा इश्क़ किसी इम्तहाँ से क्या
कोई चले चले न चले हम तो चल पड़े
मंज़िल की धुन हो जिसको उसे कारवाँ से क्या
ये बात सोचने की है वो हो के महरबाँ
पूछेंगे हाल-ए-दिल तो कहेंगे ज़बाँ से क्या