अब सिवा मेरे कहीं उसका गुज़ारा भी नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'

अब सिवा मेरे कहीं उसका गुज़ारा भी नहीं I
देख वो रुक गया गो मैंने पुकारा भी नहीं II

बच गया आज तो कल उसको भुला भी दूंगा
अब तो दिल को मेरे यादों का सहारा भी नहीं I

खत्म अफ़साना हुआ लुत्फ़ो-करम का यारो
अब वो मायल भी नहीं मुझको गवारा भी नहीं I

रात के थाल को उलटा के वो काफ़ूर हुआ
सांवली शब के कने एक सितारा भी नहीं I

सोज़ यूं बैठ के क़िस्मत को न कोसो अपनी
क्या वो खुश है जिसे तक़दीर ने मारा भी नहीं II

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