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अब सोचिये तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए / अहमद अज़ीम
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अब सोचिये तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
दीवार ओ दर को छोड़ के सहरा में आ गए
तस्वीर थे जो अव्वलीं सर-शारियों में लोग
वो ज़ख़्म बन के चश्म-ए-तमन्ना में आ गए
उन से भी पूछिये कभी अपनी ज़मीं का कर्ब
जो साहिलों को छोड़ के दरिया में आ गए
वहशत ने यूँ तो ख़ूब दिया हर क़दम पे साथ
लेकिन तेरे फ़रेब-ए-दिल-आरा में आ गए
इस अंजुमन में अंजुम ओ ज़हरा भी थे मगर
हम शब-गुज़ीदा सिहर-ए-सुरय्या में आ गए.