अब हम शबद सैन लखपाई / संत जूड़ीराम

अब हम शबद सैन लखपाई।
नहिं बहुरूप वरन कछु नाहीं क्या बरनी मैं भाई।
अचल अखंड अनूप पियारो मधुर वाच धुन छाई।
ज्यों जंत्री जंत्र को ठोके तार में तार मिलाई।
पाँच-पच्चीस एक गृह राखे शबद में सुरत समाई।
सुन्न जगो जागी सब देही मर्म दूर हो जाई।
उये भान त्रिम गयो भुलाई तन की तपन बुझाई।
ठाकुरदास मिले गुरु पूरे निरभे हो गुण गाई।
जूड़ीराम विचार पुकारें काल न हृदय समाई।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.