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अब है टूटा सा दिल ख़ुद से बेज़ार सा / बशीर बद्र
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अब है टूटा सा दिल ख़ुद से बेज़ार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
मैं भी तलवार सा तू भी तलवार सा
खूबसूरत सी पाँवों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ़्तार सा
शाम तक कितने हाथों से गुज़रूँगा मैं
चायख़ानों में उर्दू के अख़बार सा
मैं फ़रिश्तों की सोहबत के लायक़ नहीं
हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा
बात क्या है के मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है तैहवार सा
ज़ीना ज़ीना उतरता हुआ आईना
उसका लहज़ा अनोखा खनकदार सा