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अब / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
मैं अब रहता हूँ
निराशा के घर में
उदासी की गली में
मैं दुख की बस पर सवार होता हूँ
मैं उतरता हूँ मैट्रो से
हताशा के स्टेशन पर।
मैं, बिना आशा,हर जगह
जाता हूँ
मैं कहीं नहीं पहुँचता।