अभावों से होकर / औरत होने की सज़ा / महेश सन्तोषी
अगर तुम कभी अभावों से होकर गुजरते, तो जानते
अभावों का क्या अर्थ होता है?
जन्मजात होती है ज्यादातर गरीबी,
दुनिया में गरीबों का भी जन्म होता है।
मैं मानती हूँ मेरे सारे सन्दर्भ
गरीबी के हैं और सम्पर्क गरीबों से
पर मैं गरीबी नहीं बांटती
बिना गरीबी का एक हिस्सा होके।
व्यवस्थाएँ हमारे पास कुछ नहीं हैं
बस थोड़ी सी आस्थाएँ हैं
बहुत-सा विश्वास है, अपने हाथों पर
कर्म करने का संकल्प है, इच्छाएँ हैं।
हम झाडू भी बेचते हैं
सब्जियाँ भी, पर अपना
जमीर कहीं नहीं बेचते।
एक ही चेहरा है हमारे पास
हम चेहरे उतार कर नहीं फेंकते।
मैं जानती हूँ, बड़े लुभावने लगते हैं
तुम्हें मेरी देह के आकर्षण
बहुत होता है तुम्हारा
मुझे छूने, मुझे चूमने का मन।
तुम्हारी आँखों में मुझे
साफ दिखाई देते हैं
उभरती हुई वासना के रंग
बिना स्पर्शों के तुम्हारी उंगलियाँ
नापती रहती हैं
मेरे अंग-प्रत्यंग
पर मैंने तुम्हें अपना श्रम
और समय बेचा है
शरीर नहीं बेचा
अच्छा हो तुम आदमी ही बने रहो
मत बनो, दिखावे के देवता
मैंने तुम्हें अपनी गरीबी का
मजाक उड़ाने का हक कभी नहीं दिया
असली मूल्यहीन तो तुम हो
पर तुमने मुझे मूल्यहीन समझ लिया
मूल्यहीनता की पराकाष्ठा हो तुम
सम्वेदनाओं और सद्भावनाओं का एक विकृत चेहरा
मैं यहाँ रोशनी ढूँढने आई थी
अँधेरे में नहीं देख सकी
तुम्हारा दोहरा चेहरा।