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अभाव में भी सदा मैंने मुस्कुराया है / कैलाश झा 'किंकर'

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अभाव में भी सदा मैंने मुस्कुराया है
सुकून खोया सदा चैन को गँवाया है।

अभी तलक तो मेरे घर में वह किया तुमने
जो मायके ने तुझे फ़ोन पर सिखाया है।

तमाम उम्र कटेगी इसी तरह मेरी
ग़मों को दौड़ के मैंने गले लगाया है।

कमी नहीं है किसी चीज़ की मेरे घर में
इन औरतों ने सदा घर को घर बनाया है।

चले गये जो यहाँ छोड़कर निशानी कुछ
उन्हीं के दम पर सभी सुख को मैंने पाया है।

खुशी के दीप जले सबके घर ख़ुशी पहुँचे
ये कामना है मेरी मैंने दु: ख उठाया है।