भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभाव / शिवकुटी लाल वर्मा
Kavita Kosh से
किसे खलेगा मेरा अभाव
एक ऐसा पाठ हूँ मैं
जिसे शब्द-स्फीत पाठ्यक्रम से हटा दिया गया
मैं वह स्वतन्त्रता हूँ
ग़ुलामी के दिनों में जिसकी सबको ज़रूरत थी
लेकिन मिलते ही जिसका आशय झुठला दिया गया
वह रचना-बोध
जिसे रचना का स्वाँग रचने वालों ने ही मिटा दिया
फ़ैक्ट्रियों, मिलों और उद्योगपतियों की इमारतों के बीच
किसी झोपड़-पट्टी की ख़ाली ज़मीन हूँ मैं
आपाधापी और महत्त्वाकाँक्षाओं के बीच
मैं वह निःसंग आत्मीयता हूँ
जिसे एक अधूरी पँक्ति-सा बार-बार काटा गया
पर हर बार काटे जाने के साथ
वह परिवेश में कटी हुई अदृश्य उँगलियों-सी आज भी
तैरती है