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अभिजात्य के डर से / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
मैं क्यों चीखता हूं ?
कामनाओं के इस शहर में।
कौन अमृत पुत्र है
जो सहर्ष सुधा रस बाँटता हैं ?
तीव्र से तीव्रतर क्यों है
बलवती इच्छाओं के ज्वार ?
काँच के वातायन से
जब फिंकता है
दही का दोना
देश का दारूण्य उसे
नग्न, निर्वसन/आकण्ठ तृप्ति में डूब
दीन हो चाटता है
मुझे बिलकुल भी शौक नही है
कि मैं मानवता को शब्दों में नंगी करूं
लेकिन, मैं उसे नंगी देखकर
चुप रहता हूं
तो मुझ पर अभिजात्य होने का अपराध आता है