अभिमत 1-माणिक वर्मा / अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
बात बोलेगी हम नहीं
श्री वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ जी का 101 हिन्दी ग़ज़लों का काव्य संग्रह “अंगारों पर शबनम” पढ़ने का सौभाग्य मिला । हिन्दी ग़ज़लों या हिन्दी ग़ज़लकारों की अपार भीड़ में श्री वीरेन्द्र खरे सचमुच “अकेले” हैं। मुझे हैरत इस बात में है कि श्री ‘अकेला’ जी सचमुच ग़ज़ल के मिज़ाज से न सिर्फ़ वाक़िफ़ हैं वरन् उनकी 101 मेयारी ग़ज़लें फ़न की सभी कसौटियों पर खरी उतरती हैं ।
ग़ज़ल की पहली और अहम शर्त है शेरों का वज़न में होना, उसके बाद रदीफ़ क़ाफ़ियों का सही इस्तेमाल तथा अल्फ़ाज़ों की नशिस्तो-बरखास्त, जिसमें बड़े-बड़े उस्तादों तक से चूक हो जाती है, परन्तु भाई ‘अकेला’ की किसी भी ग़ज़ल में उपरोक्त ख़ामियाँ ढूँढ़े से भी नहीं मिलतीं । उन्होंने आज के सम्पूर्ण परिवेश को अपनी ग़ज़लों में जिस खूबसूरती से ढाला है, वो देखते ही बनता है । उनकी विहंगम काव्य-दृष्टि कल, आज और कल का ऐसा चमकदार आईना है जिसमें जीवन का हर प्रतिबिंब बोलता है, न सिर्फ़ बोलता है वरन् परत-दर-परत आज ही नहीं कल की हक़ीक़तों का पर्दा भी खोलता है ।
बहुत लम्बे अरसे बाद ऐसा ग़ज़ल संग्रह पढ़ने को मिला जिसने मुझे भीतर तक झकझोरा है, काश ऐसे श्रेष्ठ ग़ज़ल-संग्रह पर “अकेला” जी का नहीं मेरा नाम होता, इससे ज़्यादा प्रशंसा मिश्रित ईर्ष्या और क्या हो सकती है ।
अगले इससे भी श्रेष्ठ ग़ज़ल संग्रह की प्रतीक्षा में ढेरों मंगल कामनाओं सहित-
-माणिक वर्मा
57 लाला लाजपतराय कॉलोनी,
पंजाबी बाग़, भोपाल (म.प्र.)
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