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अभिमान / दीनदयाल गिरि
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करनी जम्बुक जून ज्यों गरजन सिंह समान ।
क्यों न डरै जग लखि तुमै अहो बोर अभिमान ।।
अहो बोर अभिमान धरा को धीर धरैगो ।
कोप न करो प्रचण्ड सबै ब्रह्मण्ड जरैगो ।।
बनै दीनदयाल बहै विधि गुरुगम गुनिये ।
जातैं होय प्रबोध उदय सो सम्मत सुनिये ।। ५२।।