अभिलाषा है (मुक्तक ) / ज्योत्स्ना शर्मा
भारत माता के चरणों का हम वंदन हो जाएँगे
ओजस्वी मन और वचन का अभिनंदन हो जाएँगे
घिस-घिस महकें माथे उनके इतनी सी है अभिलाषा
नित्य मात के पूजन-अर्चन में चंदन हो जाएँगे
दंड अभी देना है पक्का ,सरहद के हत्यारों को
लेकिन पहले सबक सिखाना ,भीतर के ग़द्दारों को
दुश्मन के सब वार भारती झेल तिरंगा ओढ़ लिया
नम नयनों से नमन करूँ माँ तेरे राजदुलारों को
पूरे करने है जननी के सपने,सब अरमान हमें
उसकी ख़ुशियों पर करने हैं अपने सुख क़ुर्बान हमें
गाँधी, वीर सुभाष तुम्हीं पर नाज़ बहुत हमको बिस्मिल
भगत सिंह ,आज़ाद याद हैं वीरों के बलिदान हमें
अभिलाषा है आज लेखनी,सरस मधुर रसधार बने
वक़्त पड़े तो खूब गरजती वीरों की हुंकार बने
करके अर्चन अरिमुण्डों से जननी का शृंगार करें
भीतर बाहर के घाती को दोधारी तलवार बने