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अभिव्यक्ति / उमा अर्पिता

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कभी-कभी
सपनों की दुनिया में
कोई रहस्यमय व्यक्तित्व
खतरनाक, नुकीले कगार पर
बहुत ही शोचनीय स्थिति में
मुझको छोड़ जाता है, तब
अपनी ही हालत पर
तरस आने लगता है, और
आँखें उसे तलाशने लगती हैं जो
क्षण भर को दिखता है, फिर किसी
जनयूथ में खो जाता है/
अपने अस्तित्व की पुकार करता हुआ…

तब--उसे पाने का राक्षसी स्वार्थ
उजागर हो उठता है ।
जी चाहता है--पहाड़, पठार, समुद्र
सब खोज डालूँ, और उसे
बाँहों में कसकर हृदय में रख लूँ,
जो--
कोई और नहीं
मेरी अपनी ही ‘अभिव्यक्ति’ है...!