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अभिव्यक्ति / भारत यायावर
Kavita Kosh से
वह मेरे आगे-आगे बह गई
मेरे आकाश को अपनी आँखों में बसाए
मेरे समर्पण को अपनी आत्मा में सुगन्ध बनाए
मेरे संघर्षों को रेखांकित करती
वह मेरे आगे-आगे बह गई
मैंने उसे गहा
मैंने उसे जिया
मैंने उसे कहा
पर मेरे शब्द मेरे नहीं रहे
मेरे भाव मेरे नहीं रहे
मेरे सन्दर्भ मेरे नहीं रहे
वह मेरे आगे-आगे बह गई
कहीं मुझको स्वीकारती, कहीं नकारती
मुझको, मेरे 'मैं' को 'हम' करती
लोगों के साथ आत्मीयता स्थापित करती, बातचीत करती
वह मेरे आगे-आगे बह गई