भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभीष्ट / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जीवन-उपवन में
मृत्यु सर्पिणी का
अस्तित्व न हो,
मृत्यु भीत से आतंकित
मानव-व्यक्तित्व न हो !
हर मानव
भोगे जीवन
संदेह रहित,
हो हर पल उसका
मधुरित सिंचित !
जीवन - धर्मी
जीवन से खेले,
भरपूर जिये जीवन
हर सुख की बाँहें
बाँहों में ले ले !