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अभी आग पूरी जली नहीं / ऐतबार साज़िद
Kavita Kosh से
अभी आग पूरी जली नहीं, अभी शोले ऊँचे उठे नहीं
अभी कहाँ का हूँ मैं गज़लसारा, मेरे खाल-ओ-खद अभी बने नहीं
अभी सीनाजोर नहीं हुआ, मेरे दिल के गम का मामला
कोई गहरा दर्द मिला नहीं, अभी ऐसे चरके लगे नहीं
इस सैल-ए-नूर की निश्बतों से मेरे दरीचा-ए-दिल में आ
मेरे ताकचिनो में है रौशनी, अभी ये चराग बुझे नहीं
न मेरे ख्याल की अंजुमन, न मेरे मिजाज़ की शायरी
सो कयाम करता मैं किस जगह, मेरे लोग मुझको मिले नहीं
मेरी शोहरतों के जो दाग हैं, मेरी मेहनतों के ये बाग़ हैं
ये माता-ओ-माल-ए-शिकस्तागान है, ज़कात में तो मिले नहीं
अभी बीच में हैं ये माजरा, सो रहेगा जारी ये सिलसिला
के बिसात-ए-हर्फ़-ओ-ख्याल पर अभी पूरे मोहरे सजे नहीं