अभी और क्या क्या होना बाक़ी है / गीताश्री
अभी और क्या-क्या होना बाक़ी है,
और कितने दिन ढोए जाएँगे सवाल,
कितनी बार हम नींदे करेंगे ख़ौफ़ के हवाले,
सपनों को कब तक रखेंगे स्थगित,
अपनी ज़मीन पर कब तक काँपते खड़े रहेंगे ढहाए जाने के लिए,
कब तक बसो में चीख़ें क़ैद रहेगीं और बेरहम सड़को पर आत्माएँ मण्डराएँगी,
क्या कुछ देखना बाक़ी है अभी कि
हम दो जुबान एक साथ बोलेंगे,
और लोग समझेंगे हालात पहले से अच्छे हैं,
हम निजता को पैरो तले रौंद कर देंगे रिश्तो की दुहाई,
और छीन लेंगे उसके मनुष्य होने का पहला हक़,
उसे उसकी औकात में रखने का करेंगे सारा जतन
कि दहशत का अदृश्य घेरा उसे कसे होगा,
जिन्हें वह उलाँघ नहीं पाएगी कभी,
वह कटेगी अपनी ही जुबान की धार से,
वह बोलेगी -- सुनो लड़कियो !...अपनी आत्माओं को सिरो पर उठा कर चलो...
सारी दलीलों के वाबजूद ये दलदल तुम्हें लील जाएँगे...
ये चेतावनी ही उसका आख़िरी सम्वाद माना जाएगा...।