भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी और यहीं / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
== शकीरा का वाका वाका
गुजरती जा रही हो
पानी की एक तेज लहर
भिगोंती हुई
रह रह कर
लगातार प्रज्वलित होती हुई
एक आग
शीशे को काटती हो
शहद की धार
ऐसी आवाज
बारिश का इंतजार हो
आ जाये अचानक
छमाछम
तेज बारिश
मूर्ति से बाहर निकल
आ गयी हो
सोंदर्य की देवी
इश्वर को कहा जाता है
पूर्ण एश्वर्य
लगा वह
पूर्ण स्त्री रूप में
प्रगट हुआ है
जब शकीरा ने
वाका वाका किया
देखो
दावों को झुठलाते हुए
अनजान देश की लड़की
शकीरा में
झलका है वो