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अभी खिलना बाकी है / अभि सुवेदी / सुमन पोखरेल
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लगता है
शब भर मेँ
किसी ने कुरेद दिया है आफताब को ।
जाने क्योँ
आज सहर होते होते
फेँक दिया है किसी ने सूरज को
आब-ए-मुर्दा-ए-राह पर ।
कहते हैँ
यह तो सिर्फ आगाज है।
नूर-ए-आफताब को अब फैलकर
पहुँचना है हरेक की आँखोँ तक।
आफताब – कल सोचा हुवा पर देख न पाया हुवा मंजर को
अब बेपर्दा होना है ।
एहसास-ए-आफताब को पिघलाने के लिए
दौडते हुए बाहर आ रहा है
गुसलखाने में बादल बन छुपा हुवा वक्त।
कहते हैँ
तूम आ तो पहुँचे हो
मगर
अभी खिलना बाकीँ है ।