भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का / अभिषेक शुक्ला
Kavita Kosh से
अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का
क़रीब आए तो देखेंगे हौसला शब का
चली तो आई थी कुछ दूर साथ साथ मिरे
फिर इस के बाद ख़ुदा जाने क्या हुआ शब का
मिरे ख़याल के वहशत-कदे में आते ही
जुनूँ की नोक से फूटा है आबला शब का
सहर की पहली किरन ने उसे बिखेर दिया
मुझे समेटने आयाथा जब ख़ुदा शब का
जमीं पे आ के सितारों ने ये कहा मुझ से
तिरे क़रीब से गुज़रा है क़ाफ़िला शब का
सहर का लम्स मिरी ज़िंदगी बढ़ा देता
मगर गिराँ था बहुत मुझ पे काटना शब का
कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का
चटख़ उठी है रग-ए-जाँ तो ये ख़याल आया
किसी की याद से जुड़ता है सिलसिला शब का