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अभी तो ख़त नहीं ठण्डे पड़े जलाए हुए / पूजा बंसल
Kavita Kosh से
अभी तो ख़त नहीं ठण्डे पड़े जलाए हुए
वो कह रहे हैं ज़माना हुआ सताए हुए
बहुत सी नेकियाँ करके मैं भूल बैठी हूँ
करूँ भी ख़र्च कहाँ सिक्कें ये कमाए हुए
कसक ये रुक के कई बार दिल में उठती है
अभी तलक रहे ज़िंदा उन्हें भुलाए हुए
ज़रा सी दूरियों का डर हमें सताता है
तुम्हें नक़द में लिया है या हो चुराए हुए
हज़ार उम्र से गुज़रे हैं हिज्र के लम्हें
हैं इंतज़ार गुज़ारिश को हम कराए हुए
हमारे खेल के साथी न रूठ जायें कहीं
तो ख़ुद के दाँव में पाँसे लिए मिटाए हुए
अगर हो इश्क़ तो तकमील ए इबादत की हद
दिए हैं पीरों ने नुस्ख़ें ये आज़माए हुए
छलक न जाए ये आँखों से सामने सबके
रखे हैं दिल में ही जज़्बात जो सुखाए हुए