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अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका / मख़दूम मोहिउद्दीन

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अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
कहो नसीमे सहर<ref>प्रातःकाल की ठंडी हवा</ref> से, ठहर-ठहर के चले ।

मिले तो बिछड़े हुए मयकदे के दर पे मिले
न आज चाँद ही डूबे, न आज रात ढले ।

शब्दार्थ
<references/>