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अभी बहुत कुछ / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
अभी नहीं
पानी पहुँचा है नाव में
अभी बहुत कुछ
बचा हुआ है गाँव में
गलियारा खो गया
मगर जो सड़क बनी है
उसके दोनों ओर
अभी भी नीम तनी है
खेल रहे हैं
बच्चे उसकी छाँव में
सिकुड़ गया है ताल
मगर अब भी है पानी
अलग भले संतो की
रहती हो देवरानी
मिलती है तो
झुक जाती है पाँव में
लौट गए हैं बंशी काका
महानगर से
पिंजरे से झाँका करते थे
वह ऊपर से
चले गए थे
गाँव छोड़ कर ताव में
अभी बहुत कुछ
बचा हुआ है गाँव में