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अभी भी लाल है पूरब / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
यक़ीनन
बेतरह ख़ुश हैं वे
मगर थोड़े से उदास
थोड़े से नाख़ुश,
थोड़े से हताश
कि अभी भी लाल है पूरब,
अभी भी लाल है सूरज का मुखड़ा,
अभी भी लाल है मनुष्य की देह में बहता रक्त।
और तो और
बेतरह लाल है,
अभी-अभी जनमे बच्चे का चेहरा।