अभी मंजिल तक चलना है! / राधेश्याम ‘प्रवासी’
तुम्हें तूफानों से लड़ कर अभी मंजिल तक चलना है।
उर्मियों में भवरों के व्यूह, गा रही धार प्रलय के गीत,
विप्लवी तड़िता तड़क रही गगन पर जलधर के संगीत,
सर्वनाशी लहरों के बीच सृजन ले पार निकलना है!
भुजाओं में भरकर दृढ़ शक्ति गिरों को उठो उठाते चलो,
विषमता की सीमाओं में प्यार की धार बहाते चलो,
तप्त तै करके मरु साथी, बहारों से चल मिलना है!
रही मानवता तुमको हेर अमर जीवन की लेकर चाह,
प्रदर्शक बाधाओं के बीच अमा से पूरित तेरी राह,
हाथ में लेकर कर्म-कृपाण प्रगति हिमगिरि पर चढ़ना है!
बनो उनके सम्बल, आधार, सहारा जिनका कोई नहीं,
एक तुम उनके बन कर रहो कि अपना जिनका कोई नहीं,
साथ पिछड़ों को लेकर के विश्व से आगे बढ़ना है!
समय का परिवर्तन हो रहा तुम्हारे इन्गित पर गतिमान
तुम्हारे श्रम की पाकर शक्ति बनेगा सपनों का उत्थान,
सर्जना की बेला में आज नया निर्माण बदलना है!