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अभी मरना बहुत दुश्वार है ग़म की कशाकश से / नज़र लखनवी

अभी मरना बहुत दुश्वार है ग़म की कशाकश से।
अदा हो जायेगा यह फ़र्ज़ बी फ़ुरसत अगर होगी॥

मुआफ़ ऐ हमनशीं! गर आह कोई लब पै आ जाए।
तबीयत रफ़्ता-रफ़्ता ख़ूगरे-दर्दे-जिगर होगी॥