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अभी मैं / नितेश व्यास
Kavita Kosh से
अभी मैं शान्ति का संगीत सुनता हूँ
अभी मेरे कानों को फोड़ती हैं दर्दनाक चीखें
अभी मैं स्नान करता हूँ
अभी मेरी आत्मा धंसती जाती है मलबे में
अभी मैं नाश्ता करता हूँ कि इतने में
सर्वनाश की एक लोमहर्षक सिहरन दौड़ पड़ती नस-नस में
अभी मैं पढ़ता हूँ कोई किताब
अभी सारे अक्षर वाक्य-रथों पर आरूढ़ हो हमला बोल देते मेरी चेतना पर
अभी मैं सोचता हूँ सुनसान पड़ी सड़कों के बारे में कि
एक जानी पहचानी भीड़
घुस आती मेरे मन-मस्तिष्क में
इन सब से परास्त कुछ देर बैठना चाहता हूँ आंखें बन्द कर
तो दीख पड़ता
दो बर्ष का बालक
अपनी माता की मृतदेह के पास बैठा खोज रहा अपने जीवन का स्रोत
मेरी सांसें अब भी चल रही है
सजीव कहलाने की सार्थकता को ख़ारिज करती हुई।