अमरत्व निहित / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
जे बलि चढ़बा लै तत्पर मातृचरणमे
अमरत्व निहित अछि निश्चत ताहि मरणमे।
जे जन्मल, मुइल न, से क्यौ जन सुनने छी?
पुनि अपना दिससँ आँखि किए मुनने छी।
माताक कोखिकेँ ओ बनबय गौरवमय
जे अटल रहय निर्भय भय जीवन-रणमे।
यदि जन्म भूमि दिस आङुर दुष्ट उठाबय,
सत्पुत्र तुरत तकरा यमलोक पठाबय,
जे सहि न सकय अपमान अपन इतिहासक
भूगोल रहय तकरे मुट्ठी-बन्धनमे।
जे स्वार्थ त्यागि देशक हित वक्ष अड़ाबय,
से सिंहोसँ पंजा निर्भीक लड़ाबय,
मुइलोपर से अक्षय उज्ज्वल यशभागी
गनगना उठय तकरे गुणगान गगनमे।
के शव बनि बितबय चाहत अनुपम जीवन,
केशव समान बनि अर्पय निज तन-मन-धन,
दीनक प्रति हृदय दयालु जकर बनि पिघलय
फहराय तकर कीर्ति-ध्वज समरांगणमे।
पुनि लौह पुरूष निर्भय पटेल सनचाही
ओ नहि चाही, जे छल करैत चरबाही
से अमर पुत्र भारत माताक सिपाही
जे पाबय परमानन्द रक्त-तर्पणमे।