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अमरत्व / अनिल शंकर झा

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मनालौ ये जीवन मे ंमानव,
ढेरी कष्ट सहै छै।
बार-बार सपना टुटला पर,
ढ़ेरे लोर बहै छै।
लेकिन लोर पोछी केॅ उषा,
नपका रूप सजैनें।
आबै छै फेनू उमंग से,
नपका जशन मनैनें।
नै हारलोॅ छै रात अन्हरिया,
नै सूरज थकलोॅ छै।
इन्सां के जीयै के इच्छा,
नै आभीं मरलोॅ छै।
जाइया तक जित्तोॅ छै इन्सां,
तहिया तक लड़तै ऊ।
टुटतै चाहै रोज घरोंदा,
रोज नया गढ़तै ऊ।