अमरत्व / मन्त्रेश्वर झा
कखनो के एना होइत छै
जे अहाँ ने पूब जा सकै छी ने पच्छिम
ने उत्तर जा सकैत छी ने दच्छिन
आने ठाढे रहि सकैत छी ओतय
जतऽ छी ठाढ़
ने पड़ाइये सकै छी कत्तहु
तखन शतरंजक खेल मे
बादशाह जकाँ चेकमेट भऽ जाइ छी
मौत भऽ जाइ छी
आ अहाँ के मुक्ति देबाक लेल
बाजी समाप्त भऽ जाइछ
अहाँ बाजी हारि ओहिठाम सँ
विदा भऽ जाइ छी
आ कि प्रतिद्वन्द्वी संग
पसारि लैत छी दोसर बाजी फेर।
मुदा जीवनयात्रा मे जखन
एना होइत अछि
तखन ककरा संग पसारब अहाँ बाजी
अहाँ तऽ अपनहि सँ खेलाइत सोलो
हारल रहैत छी अपन बाजी
जीबाक लेल अभिशप्त
ने बचैत अछि, ठाढ़ हेबाक जगह
ने पड़यबाक रास्ता
आ तखन अहूँ के होइछ विभ्रम
जे अहूँ छी कोनो अभिमन्यु।
चक्रव्यूह तँ अहाँक अपने रचल अछि
स्वार्थ आ अहंकारक चकरघिन्नी
मुदा हारू ने अपना आस्था
मुक्तिक द्वारि एखनियों भेटि सकैत अछि,
हमर आत्मन्
आह्लाद सँ कऽ लियऽ मृत्युक अभिनन्दन
भऽ जायब निर्भय निश्शंक
टूटि जायत सभ भ्रम-विभ्रम
भेटि जायत परमात्माक दृष्टि
अमरत्वक कोनो आर रास्ता
भेटत नहि पार्थ!