भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अमरित की धारा / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
1
ये घोर अँधेरा है
सूरज से चमको
व्याकुल मन मेरा है।
2
जग खारा सागर है
मरुथल जीवन है
पिय मीठी गागर है।
3
भगवान बसे हिय में
जैसे भगतों के,
पिय तू मेरे जिय में।
4
जड़वत् ये जग सारा
बादल से बरसी
तू अमरित की धारा।