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अमर हिन्दी हमारी है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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जहाँ हर तृप्ति पाती विश्व की बौद्धिक पिपासा है।
जहाँ बंधुत्व, मैत्री, प्रेम की फलती सदाशा है।।
दिया संदेश जिसने शांति का जग को, वही भारत,
हमारा देश है, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है।।

अनोखी है, अलंकृत रूप-रस की खान हिन्दी है।
सुवासित भाल-सुमनों से सजा उद्यान हिन्दी है।।
मुदित हो देववाणी भी हुई बलिहार है जिस पर,
वही भाषा हमारी, ईश का वरदान हिन्दी है।।

विविध गुरू-ज्ञान की दात्री, सुधा रसधार हिन्दी है।
विभूषण भारती का, स्वर्णमय गलहार हिन्दी है।।
जिसे पाकर बने भारत-निवासी भाग्यशाली हैं,
वही अनमोल रत्नों से भरा भण्डार हिन्दी है।।

कबीरा, सूर, तुलसी ने जिसे हो मुग्ध अपनाया।
रहिम, रसख़ान ने जिसकी सरसता से सुयश पाया।।
बिहारी, देव, पद्माकर बने जिसके पुजारी थे,
निराला, पंत ने जिसका सुखद आलोक फैलाया।।

छटा जिसकी आलौकिक विश्व के हित मुग्धकारी है।
गुणी, विद्वद्जनों ने आरती जिसकी उतारी है।।
विरोधी लाख हों इसके, कभी यह मिट नहीं सकती,
अमर हैं भक्तजन इसके, अमर हिन्दी हमारी है।।