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अमावस के बाद वाला चान्द / अर्पिता राठौर

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मैं
पूरा चान्द
नही
देखना चाहती
कभी,

उसमें विद्यमान
समग्रता के बिम्ब
नहीं
देखना चाहती
कभी

मुझे तो
वो चान्द देखना है

जो
निकलता है
अमावस के ठीक
अगले दिन

जो समग्र
भले ही न हो

लेकिन दिखाता है
अपने
नुकीलेपन को

अपने ही
सौन्दर्य बोध में ।