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अमा की गोदी में / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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पिया दर्द को जिसने छककर,
विषकर पान पचाया है।

गीत उसी ने गाये सुन्दर,
गजल वही लिख पाया है।

यादों के पंछी थककर
सो गये अमा की गोदी में,

थिरक थिरक कर आज
चाँदनी ने फिर उन्हें जगाया है।

तन के उजले, मन के काले
दौलत के रखवाले हैं

अर्थ प्रदूषण ने जन जन को
घिस घिस जहर पिलाया है।

कण्ठ लगाकर जिन्हें कंटकों
ने जीभर कर प्यार किया,

फूलों का रस रास खोखला
उन्हें रास कब आया है ?

जब जब प्राणों में विरहा की,
वंशी के स्वर गूँजे हैं

तब तब आँखों ने मोती का
सारा कोष लुटाया है।