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अमृत / अनिता ललित
Kavita Kosh से
छलक उठी जब... आँसू बनकर...
असहनीय पीड़ा... प्यार की,
खोने ही वाली थी... अस्तित्व अपना...
कि बढ़ा दिए तुमने अपने हाथ...
भर लिया उसे... अँजुरी में...
और लगा लिया... माथे से अपने!
बन गई उसी क्षण वो...
खारे पानी से... अमृत,
और हो गया...
अमर... हमारा प्यार...!