अमोघ नारायण झा 'अमोघ' / परिचय
जन्म: भद्र कृष्ण द्वितीय, १९२४ इसवी, तत्कालीन पूर्णिया जिले का जयनगर गाव, बिहार
शिस्खा: साहित्य भूषण, B.A.C.T. लब्ध स्वर्ण पदक
वृत्ति: स्वतंत्रता सेनानी, हिंदी अध्यापक, सम्मानित साहित्यकार
कृति: साप्ताहिक विश्वमित्र, कलकत्ता १९४५ इसवी मे पहली कविता का प्रकाशन
१९६५ गीत गंध (कविता संग्रह) १९९९ मैं तो तेरे पास मे (कविता संग्रह)
राष्ट्र सब्देश, युग्वानी, अवंतिका, नयी धारा, श्रमिक, अनुपमा, विपक्ष, वर्तिका, धर्मयां, सरोकार, U.S.M. पत्रिका सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं मे रचना प्रकाशित।
सम्मान:
१९४५ इसवी: साहित्य सम्मेलन, फारबिसगंज(अररिया) मे कविता प्रतियोगिता मे प्रथम पुरस्कार (रजत पदक)
१९४८ इसवी: नगर साहित्य समिति, भागलपुर द्वारा कविता प्रतियोगिता मे प्रथम पुरस्कार
१९४९ इसवी: बिहार सरकार द्वारा हिंदी साहित्य मे स्वर्ण पदक
१९७५ इसवी: पूर्णिया जिला, हिंदी साहित्य सम्मेलन के रजत जयंती समारोह मे उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिए सम्मान पत्र
१९९६ इसवी: बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना द्वारा वयोवृद्ध साहित्यकार सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र
१९९७ इसवी: स्वतन्त्रता प्राप्ति के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर जिला पदाधाकारी, अररिया के द्वारा सम्मानित
२००४ इसवी: वाग्वैचित्र्य मंच, अररिया के द्वारा स्मृति पदक से सम्मानित; सुखदेव नारायण द्वारा सम्मानित
दिनांक १२/४/२००७ को बिहार के राज्यपाल महामहिम आर० एस० बोमोई द्वारा रेणु स्मृति सम्मान एवं पुरस्कार से सम्मानित
पंडित अमोघ नारायण झा 'अमोघ'
पंडित अमोघ नारायण झा 'अमोघ' छायावादोत्तर हिंदी गीत-परम्परा के महत्वपूर्ण गीतकार हैं। इनके गीतों मे प्रकृति प्रेम, मानवीय संवेदनाएं और निश्छल मनोभाव्नायें बड़ी सहज लय मे अभिव्यक्त हुई हैं। श्री झा कविता की एकांत साधना करते रहे हैं। ग्राम गंध इनके गीतों मे प्राण-वायु की तरह समाहित है। उत्तर छायावाद मे जो नवगीत, जनवादी गीत और नयी कविता के आंदोलन चले, अमोघजी ने उन कवितान्दोलनो से अपने को अलग रखा। स्वतंत्रता आंदोलन मे सक्रिय भागीदारी ने इनके गीतों को धारदार बनाया। जनांदोलन, जनाकंक्षा, राष्ट्रनिर्मान, उद्बोधन और नवास्वप्नो को मुखरित करने वाले इनके गीतों ने कविता के वंदनवार सजाये हैं।
'गीत गंध' के प्रकाशन के साथ कवि की कीर्ति कों पंख मिल गए थे। प्रसिद्ध आलोचक डाक्टर लक्ष्मी नारायण सुधांशु ने मुक्त कंठ से 'गीत गंध' कों सराहा था। इस गीत संग्रह मे गीत के स्वरूप कों अमोघ जी ने नयी शैली दी, व्यंजनाओं मे नवीनता का चमत्कार भरा, रसा बोध की नयी भंगिमा से गीतों कों सजाया संवारा। प्रख्यात कवि नागार्जुन ने भी गीत गंध की रचना के लिए गीतकार की प्रतिभा कि प्रशंसा की। 'आर्द्रा' और 'कचनार' वाले गीतों ने अनेक कवियों कों मुग्ध किया। 'कर्मयोगी' शीर्षक गीत में उद्वेलित करने वाला व्यंग्य स्मरणीय है। १९५५ मे रचित इनका प्रसिद्ध अभियान गीत 'बज रही बिगुल, जगा रहा नया विहान' इतना लोकप्रिय हुआ की अनेक पत्रपत्रिकाओं ने इसे छापा। कोसी तटबंध के निर्माण कार्य मे लगे श्रमिकों कों इस गीत ने प्रेरणा दी और देखते देखते ये गीत लोकजीवन मे समा कर जन-गीत बन गया।