अम्बर तक जय-घोष छा रहा पावन पूजन-वेला है / गुलाब खंडेलवाल
अम्बर तक जय-घोष छा रहा पावन पूजन-वेला है
आज धरा-माँ के मंदिर में भू-पुत्रों का मेला है
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कितने यहाँ जलन ले आये, विष की कर बौछार चले
कितने धन, दारा, परिजन में अपना तन-मन वार चले
आये कितने वीर, धरा का कर पल भर श्रृंगार चले
कितने ऐसे चले अमृतमय, ओरों को भी तार चले
धन्य जिन्होनें भव-विमुक्ति-हित कष्ट मरण का झेला है
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गाँव-गाँव में गाता कोई गाँधी का सन्देश चला
छ्यासठ कोटि पगों से उठकर, यह लो सारा देश चला
कोटि-कोटि हलधर के जोड़े चले नील घन-माला संग
भूमि चली, नभ चला, चराचर चले, स्वयं सर्वेश चला
सत्य-अहिंसा-साधक जग में किसने कहा 'अकेला है'!
अम्बर तक जय-घोष छा रहा पावन पूजन-वेला है
आज धरा-माँ के मंदिर में भू-पुत्रों का मेला है
(विनोबा भावे तथा भूदान-आन्दोलन)