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अम्माँ, मुझे उड़ाओ / रामसिंहासन सहाय 'मधुर'
Kavita Kosh से
अम्माँ, आज लगा दे झूला,
इस झूले पर मैं झूलूँगा!
इस पर चढ़कर ऊपर बढ़कर
आसमान को मैं छू लूँगा!
झूला झूल रही है डाली
झूल रहा है पत्ता-पत्ता,
इस झूले पर बड़ा मजा है
चल दिल्ली, ले चल कलकत्ता।
झूल रही नीचे की धरती
उड़ चल, उड़ चल, उड़ चल,
बरस रहा है रिमझिम रिमझिम
उड़कर मैं छू-लूँ दल बादल।
वे पंछी उड़ते जाते हैं
अम्माँ तुम भी मुझे उड़ाओ,
पीगें मेरे सुगना कूटी
मेरे पिंजड़े में आ जाओ।
आओ झूलूँ, तुम्हें झुलाऊँ
नन्हे को मैं यहीं सुलाऊँ,
आ जा निंदिया, आ जा निंदिया
तुम भी गाओ मैं भी गाऊँ।
यह मूरत चुनमुनिया झूले
जंगल में ज्यों मुनिया झूले,
मेरे प्यारे तुम झूलो तो
मेरी सारी दुनिया झूले!
-साभार: बालसखा, सितंबर, 1939, प्रथम पृष्ठ