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अम्माँ की रसोई में / रमेश तैलंग

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हल्दी दहके, धनिया महके,
अम्माँ की रसोई में ।

आन बिराजे हैं पंचायत में
राई और जीरा ।
पता चले न यहाँ किसी को
राजा कौन फकीरा ।
सिंहासन हैं ऊँचे सबके
अम्माँ की रसोई में ।

आटा-बेसन, चकला-बेलन,
घूम रहे हैं बतियाते ।
राग-रसोई बने प्यार से
ही अच्छी, ये समझाते ।
रूखी-सूखी से रस टपके
अम्माँ की रसोई में ।

थाली, कड़छी और कटोरी,
को सूझी है मस्ती।
छेड़ रही है गर्म तवे को
छूर-छूर हँसती-हँसती।
दिखलाती हैं लटके-झटके
अम्माँ की रसोई में।