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अम्मा-बाबू / अवनीश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
पड़े हुए
घर के कोने में
टूटे फूटे बर्तन जैसे,
'अम्मा बाबू'
अपनी हालत
किससे बोलें,किसे बताएँ।।
तैर रही
उनकी आँखों में
सिरका-सत्तू की जोड़ी,
हथपोइया
रोटी का टुकड़ा
नमक-तेल या चटनी थोड़ी,
कंक्रीट के
जंगल में अब
पैकेट का फैशन पसरा है,
पिज्जा,बर्गर
पेट भर रहे
मन भूखा कैसे समझाएँ??
बेटे का घर
घर में बच्चे
हाथों में मोबाइल पकड़े,
गेम, चैट,
नेट पर सीमित वे
तकनीकी युग में हैं जकड़े,
गंवई देशी
ठेठ देहाती
बोली भाषा वाले दोनों,
भरे हुए
घर में एकाकी
कथा-कहानी किसे सुनाएँ??
नॉनस्टिक
इंडक्शन वाली
जेनरेशन अब नहीं समझती,
इतना अंतर
बूढ़ी पीढ़ी
ढोते-ढोते कितना सहती,
सुबह-शाम
दिन रात दर्द से
टूट चुके हैं अम्मा-बाबू,
हाथ जोड़कर
रोकर कहते
हे ईश्वर!अब हमें उठाएँ।