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अम्मा का तेरवां / मंजूषा मन

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ग्राम भोज कराना होगा,
गौ दान देना होगा,
अम्मा का तेरवां धूम-धाम से करना होगा,

वरना अम्मा शांति न पायेगी
भटकती फिरेगी आत्मा...

तुम्हें सताएगी,
रात रात जगायेगी,
सौ सौ रोग लगाएगी,

होश खोकर पगलाओगे
कहीं चैन न पाओगे
बेटा बीमार होगा
मंदा व्यापर होगा...

छोड़ देंगे कुल-देवता भी साथ
कुछ न रहेगा तेरे हाथ...

वो थरथर कांपने लगा
सोचता है
अम्मा जो जान से प्यारी थी,
जो पैर में कांटा चुभने पर
तड़प उठती थी,
मेरी आँख में एक आँसू देख
हजारों मन्नते माँगती थी,
व्रत उपवास रखती...

अब मर कर क्या इतना सताएगी
बिना ग्राम भोज
गौ दान, धूम-धाम के
उसकी आत्मा चैन न पाएगी

क्या अम्मा सच में इतना सताएगी?