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अम्मा सहेजती है / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
भरी दुपहरी से
अम्मा लौट आयी देहरी से
तकती राह, मन में एक चाह
सूप भर घर-आँगन
सजाती-सवाँरती रहती है मगन
फटकती है इच्छायें
बचा लेती है नेह बन्धन
पुराने दिन-पुरानी रातें
फेंक आती है घूरे पर
अम्मा सहेजती है रिश्ते-नाते
करती है मुंडेर पर गौरैया से...
आँगन में तुलसी से... ढेर-सी बातें
बातें मन की... बातें अर्न्तमन की...
नयी भोर की लाली में
अम्मा सजाती है घर
मंदिर की घंटियों से अशीशते हैं उसके स्वर
भरी दुपहरी में...