अम्मा / कल्पना लालजी
आज मगर अम्मा की बातें याद किसे हैं आती
भूली बिसरी एक कहानी बन कर रह गई अम्मा
जोड़–जोड़ में दर्द है उसके किसको जा दिखलाये
आँखों से आंसू पीती बैठी रह गई अम्मा
कभी नहीं सोचा था उसने ऐसा एक दिन होगा
सूनसान गलियारे में देखो खो गई अम्मा
आओ चल कर ढूंढे उसको देर न हो जाये
हाथ पकड़कर फिर से उसको घर के अंदर लायें
किस्मत से जो मिलती सबको हम उसको अपनाये
ठोकरों में जीने वाली चीज नहीं है अम्मा
आसमान से उतरी है जो बस हम सबकी खातिर
आज उसी की खातिर फिर हम क्यों न मर जाये
अपनी–अपनी सबने कह ली उसकी भी सुन लेते
जाने कौन से सपने देखो बुनती रह गई अम्मा
आकर उसके सपनों में हम दुनिया नई बसाएं
उससे है संसार हमारा उसको जा बतलाएं
अम्मा के मन को समझो ह्रदय में उसके झांको
दूध के संग घुट्टी में यही सिखाती अम्मा
अपनी रोटी देकर तुमको खुद भूखी सो जाती
फिर भी तू उसको न समझा कैसी तेरी अम्मा
जिसको भी देखो तुम आज अपनी धुन में रहता
रिश्तों की उलझन में कैसी उलझ गई है अम्मा
ताने –बाने बुनते –बुनते सारी उमर है बीती
फिर भी जाने क्यों थकी-थकी सी दिखती अपनी अम्मा
पालने से अब भी आती तेरे हाथों की खुशबू
साँझ- सवेरे मुझे झुलाती जिसमे मेरी अम्मा
गोल – गोल चंदा सी रोटी मुंह में जाकर घुल जाती
ऐसे लम्हों की याद मुझे अब भी आती है अम्मा
आज मिले जो पल हमको उनको जाने न देना
मत भूलो इस उम्र में कर्जा है तुम पर अम्मा
सूद समेत समय पर जिसको तुम चुकता कर देना
एक बार बिछड गई तो फिर न आएगी अम्मा