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अम्मू भाई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
दादी हार गईं हैं लगा-लगा कर टेरा।
अम्मू भाई उठो हुई शाला कि बेरा।
मम्मी ने तो आलू डोसे पका दिये हैं।
मन पसंद हैं तुम्हें, समोसे बना दिये हैं।
पापा खड़े हुये हैं लेकर बस्ता तेरा।
अम्मू भाई उठो हुई शाला कि बेरा।
देखो उठकर भोर सुहानी धूप सुनहली।
बैठी है आँगन में चिड़िया रंग-रंगीली।
पूरब में आकर सूरज ने स्वर्ण बिखेरा
अम्मू भाई उठो हुई शाला कि बेरा।
वैन तुम्हारी तनिक देर में आ जायेगी।
हार्न बजाकर अम्मू-अम्मू चिल्लायेगी।
नहीं लगेगा वाहन का अब फिर से फेरा।
अम्मू भाई उठो हुई शाला कि बेरा।
सुबह-सुबह से तुमको रोज़ उठाना पड़ता।
दादा-दादी, मम्मी को चिल्लाना पड़ता।
इस कारण से समय व्यर्थ होता बहुतेरा।
अम्मू भाई उठो हुई शाला कि बेरा।