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अयलन रूकमिन जदुराई हे, परछों बर नारी / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अयलन<ref>आई</ref> रूकमिन जदुराई हे, परछों<ref>परिछन की विधि सम्पन्न करो</ref> बर नारी।
नगरी में पड़लो<ref>पड़ गया</ref> हँकार<ref>निमंत्रण</ref> हे, परछों बर नारी॥1॥
कंचन थारी सजाऊँ हे, परछों बर नारी।
मानिक दियरा बराऊँ हे, परछों बर नारी॥2॥
दस पाँच आगे पाछे चललन परिछे, गीत मधुर रस गावे हे।
रूकमिन हथिन<ref>हैं</ref> चान<ref>चाँद</ref> के जोतिया<ref>ज्योति</ref> बाल गोबिंदा<ref>बालक गोविंद, कृष्ण</ref> सुकुमार हे॥3॥
काहे तों हहु<ref>हो</ref> हरि नीने<ref>नींद से</ref> अलसायल, काहे हहु मनबेदिल हे।
का तोर सासू नइ किछ देलन, का सरहज तोर अबोध हे॥4॥
नइ मोरा सासु हे नइ किछु देलन, नइ मोर सरहज अबोध हे।
मोर सासु हथिन लछमिनियाँ, सरहज मोर कुलमंती<ref>कुलवती, कुलीन</ref> हे।
मोर ससुरार न भोराय<ref>भूलता</ref> हे, परिछों बर नारी॥5॥

शब्दार्थ
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