अयादत / मजाज़ लखनवी
ये कौन आ गया रुखे-खंदाँ लिये हुये
आरिज़ पे रंगो-नूर का तूफ़ाँ लिये हुये
बीमार के क़रीब बसद-शाने-एहतियात
दिलदारि-ए-नसीम-ए-बहाराँ लिये हुये
रुख़सार पर लतीफ़ सी इक मौज़े-सरखुशी
लब पर हँसी का नर्म सा तूफ़ाँ लिये हुआ
पेशानि-ए-ज़मील पे अनवारे-तमकनत
ताबिंदगी-ए-सुबहे-दरख्शाँ लिये हुये
ज़ुल्फ़ों के पेचो-ख़म में बहारें छिपी हुईं
इक कारवाने-निगहते-बुस्ताँ लिये हुये
आ ही गया वो मेरा निगारे-नज़रनवाज़
ज़ुल्मतकदे में शमए-फ़िरोज़ाँ लिये हुये
इक-इक अदा में सैकड़ों पहलू-ए-दिलदही
इक-इक नज़र में पुरसिशे-पिनहाँ लिये हुये
मेरे सवादे-शौक़ का ख़ुरशीदे-नीमशब
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ लिये हुये
दर्से-सुकूनो-सब्र ब-ईं-एहतमामे-नाज़
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ लिये हुये
आँखों से एक रौ से निकलती हुई हर आन
गर्क़ाबि-ए-हयात का सामाँ लिये हुये
मिलती हुई निगाह में बिजली भरी हुई
खिलते हुये लबों में गुलिस्ताँ लिये हुये
ये कौन है ’मजाज़’ से सरगर्मे-गुफ़्तगू
दोनों हथेलियों पे ज़नख़दाँ लिये हुये