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अयोध्या-4 / सुशीला पुरी

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अयोध्या में गर्म हवाएँ चलती हैं
बिल्कुल गर्म
जेठ की दुपहरी की तरह
 
तपती है अयोध्या
आस्था की आँधी मे
उड़ गया है सब कुछ
ज़िद की बुनियाद पर
 
बनते हैं मंदिर यहाँ
बनती है मस्जिद यहाँ
कराहती है सरयू
आकंठ प्यास मे डूबी

उसकी गोद मे निढाल हैं
लू खाए राम ।